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उत्तराखंड छात्रवृत्ति घोटाला: देहरादून के पूर्व समाज कल्याण अधिकारी को एसआईटी ने किया गिरफ्तार


उत्तराखंड छात्रवृत्ति घोटाला: देहरादून के पूर्व समाज कल्याण अधिकारी को एसआईटी ने किया गिरफ्तार
देहरादून: छात्रवृत्ति घोटाले में एसआईटी ने देहरादून के पूर्व समाज कल्याण अधिकारी रामवतार को गिरफ्तार किया है। रामवतार सिंह के खिलाफ डालनवाला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने पद पर रहते हुए सहारनपुर के एक इंस्टीट्यूट को फर्जी तरीके से करीब 27 लाख रुपये की छात्रवृत्ति जारी की। इस छात्रवृत्ति की इंस्टीट्यूट के मालिकों और अधिकारियों ने बंदरबांट कर ली। 
वर्ष 2012 से 2017 के बीच एससी-एसटी छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में खेल हुआ था। करीब 300 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की छात्रवृत्ति की रकम तमाम प्राइवेट इंस्टीट्यूट के हजारों छात्रों के नाम पर जारी की गई थी। वर्ष 2018 में मामले की जांच के लिए आईपीएस मंजूनाथ टीसी की अध्यक्षता में एक एसआईटी का गठन किया गया था।
एसआईटी की जांच पर हरिद्वार में 51 और देहरादून में 32 मुकदमे निजी शिक्षण संस्थानों के खिलाफ दर्ज किए गए थे। इनमें से हरिद्वार में 38 और देहरादून में 26 मुकदमों में तत्कालीन सरकारी अधिकारी (समाज कल्याण विभाग) के अधिकारियों के नाम शामिल हैं। इन सभी अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज हैं। अब तक कई निजी संस्थानों मालिकों को गिरफ्तार किया जा चुका है।  

इसी क्रम में डालनवाला में दर्ज मुकदमे में तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी देहरादून रामवतार सिंह को गिरफ्तार किया गया है। उन्हें शनिवार को ड्यूटी मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है। 

रामवतार सिंह पर यह हैं आरोप 
मामला सहारनपुर के ओम संतोष प्राइवेट आईटीआई (चक हरैति, जनता रोड) को छात्रवृत्ति जारी करने का है। इस मुदकमे की विवेचना इंस्पेक्टर नदीम अतहर कर रहे थे। जांच में पाया गया कि रामवतार सिंह ने वर्ष 2012-13 में दर्शाए गए एससी-एसटी के 40 छात्रों के मांगपत्र के क्रम में 14.52 लाख रुपये की छात्रवृत्ति जारी की। इसके अलावा वर्ष 2013-14 में इसी तरह 12.39 लाख रुपये की छात्रवृत्ति छात्रों के बैंक खातों में जमा कराई गई। 

एफएसएल जांच में सच आया सामने 
जांच अधिकारी ने सभी बैंकों से दस्तावेज मांगे थे। इन दस्तावेजों पर रामवतार सिंह के हस्ताक्षर मौजूद थे। यानी सारी धनराशि उन्हीं के हस्तक्षरों से जारी की गई थी, लेकिन जब यह दस्तावेज रामवतार सिंह को दिखाए गए तो उन्होंने यह अपने हस्ताक्षर होने से इनकार कर दिया।

इस पर जांच टीम ने उनके हस्ताक्षर मिलान के लिए नमूने लेकर एफएसएल को भेजे। एफएसएल जांच में खुलासा हुआ तो पता चला कि यह हस्ताक्षर रामवतार सिंह के ही हैं। इसके अधार पर उनके खिलाफ यह केस दर्ज किया गया। 

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