23 मार्च शहीदी दिवस :सिर्फ समय बदला और कुछ नहीं बदला भगत तेरे देश में, भगत सिंह के अनसुने विचार
आज शहीदी दिवस पर पढें शहीदेआजम भगत सिंह के अनसुने विचार जो यह साबित करते हैं कि समय जरूर बदला है लेकिन देश आज भी वहीं है जहाँ आजादी से पहले था कुछ नहीं बदला जिसे वह बदलना चाहते थे..
तू मुझको भगत सिंह बहुत याद आया....
हमारी दशा उस समय दयनीय और हास्यास्पद हो जाती है, जब हम अपने जीवन में अकारण ही रहस्यवाद प्रविष्ट कर लेते हैं, यद्यपि इसके लिए कोई प्राकृतिक या ठोस आधार नहीं होता।
—(भगत सिंह)
अखबारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएँ हटाना है, लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगडे़ करवाना और भारत की साँझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है।
—(भगत सिंह
तिल-तिल मरने से एक बार मर जाना अच्छा है।
—(भगत सिंह )
थोपी हुई अज्ञानता ने एक ओर से और बुद्धिजीवियों की उदासीनता ने दूसरी ओर से शिक्षित क्रांतिकारियों और हथौड़े दरांतवाले उनके अभागे अर्द्धशिक्षित साथियों के बीच एक बनावटी दीवार खड़ी कर दी है। क्रांतिकारियों को इस दीवार को अवश्य ही गिराना है।
—(भगत सिंह
आज समाज में होने वाले दमन के विरुद्ध कौन-सी आवाज उठ रही है और स्थाई शांति की स्थापना के लिए कैसे विचार उठ रहे हैं, उन्हें ठीक से समझे बिना इनसान का ज्ञान अधूरा रह जाता है। —(भगत सिंह
कोई गुलाम जाति उच्चतम सिद्धांत का नाम तक लेने की अधिकारिणी नहीं है। एक गुलाम मनुष्य के मुख से निकलकर इसका महत्त्व ही जाता रहता है। एक अपमानित मनुष्य, पददलित, पैरों तले रौंदे जानेवाला मनुष्य यदि कहे—‘मैं विश्वबंधुता का अनुगामी हूँ, Universal brotherhood का पक्षपाती हूँ, इसलिए इन अत्याचारों का प्रतिकार नहीं करता’-तो उसका कथन क्या मूल्य रख सकता है? कौन सुनेगा उसके इस कायरतापूर्ण वाक्य को? हाँ-तुममें शक्ति हो, तुममें बल हो, चाहो तो बड़े-बडे़ अभिमानियों को मिट्टी में मिला सको और फिर तुम यह वाक्य कहते हुए कि ‘हम विश्वप्रेमी हैं, ऐसा न करो, तो तुम्हारी बात वजनदार होगी-फिर तुम्हारा एकएक वाक्य प्रभावशाली होगा। फिर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ भी महत्वपूर्ण हो जाएगा।
—(भगत सिंह )
वर्तमान शासन-व्यवस्था उठती हुई जनशक्ति के मार्ग में रोड़े अटकाने से बाज न आई तो क्रांति के इस आदर्श की पूर्ति के लिए एक भयंकर युद्ध का छिड़ना अनिवार्य है। सभी बाधाओं को रौंदकर आगे बढ़ते हुए उस युद्ध के फलस्वरूप सर्वहारा वर्ग, अधिनायक तंत्र की स्थापना होगी। यह अधिनायक तंत्र क्रांति के आदर्शों की पूर्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।
—(भगत सिंह)
जो नौजवान दुनिया में कुछ तरक्की करना चाहते हैं, उन्हें वर्तमान युग में महान् तथा उच्च विचारों का अध्ययन करना चाहिए।
-(भगत सिंह)
हमारा देश बहुत आध्यात्मवादी है, लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं, जबकि पूर्ण तथा भौतिकवादी कहलाने वाला यूरोप कई सदियों से इंकलाब की आवाज उठा रहा है। उसने अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों के दौरान ही समानता की घोषणा कर दी थी। आज रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटाकर क्रांति के लिए कमर कस ली है।
-(भगत सिंह )
मनुष्य का रक्त बहाने के लिए हमें खेद है, परंतु क्रांति की वेदी पर कभी-कभी रक्त बहाना अनिवार्य हो जाता है। हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रांति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत कर देगी।
--(भगत सिंह )
आलोचना तथा स्वतंत्र विचार, दोनों ही एक क्रांतिकारी के अनिवार्य गुण हैं।–(भगत सिंह)
निर्माण के लिए ध्वंस आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।
-(भगत सिंह)
हमारे इंकलाब का अर्थ पूँजीवादी युद्धों की मुसीबतों का अंत करना है। मुख्य उद्देश्य और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया समझे बिना किसी के संबंध में निर्णय देना उचित नहीं। गलत बातें हमारे साथ जोड़ना साफ-साफ अन्याय है।
--(भगत सिंह)
केवल यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं, किसी प्रकार भी उचित नहीं कहा जा सकता।
-(भगत सिंह)
अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।
-(भगत सिंह)
एक क्रांतिकारी जब कुछ बातों को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी माँग करता है, अपनी उस माँग के पक्ष में दलीलें देता है, समस्त आत्मशक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है, उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है, इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बलप्रयोग भी करता है। इसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारें, परंतु आप इन्हें हिंसा के नाम से संबोधित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना कोश में दिए गए इस शब्द के अर्थ के साथ अन्याय होगा।
-(भगत सिंह)
वे लोग जो महल बनाते हैं और झोपड़ियों में रहते हैं, वे लोग जो सुंदर-सुंदर आरामदायक चीजें बनाते हैं, स्वयं पुरानी और गंदी चटाइयों पर सोते हैं। ऐसी स्थितियाँ यदि भूतकाल में रही हैं तो भविष्य में क्यों नहीं बदलाव आना चाहिए? यदि हम चाहते हैं कि देश की जनता की हालत आज से अच्छी हो तो यह स्थितियाँ बदलनी होंगी। हमें परिवर्तनकारी होना होगा।
–(भगत सिंह )
अपमान से भरी गुलामी की जिंदगी से तो मौत हजार दर्जा अच्छी है।
-(भगत सिंह )
ये पगले लोग न जाने कहाँ से आ गए, जिन्हें न मृत्यु का भय था, न जीने की चाह; कार्य-क्षेत्र में से, युद्ध-क्षेत्र में हँसे, फाँसी के तख्ते पर भी मुस्करा दिए। उनकी महिमा अपरम्पार है।'हों फरिश्ते भी फिदा जिन पर ये वो इनसान हैं!'
—(भगत सिंह )
क्या यह अपराध नहीं है कि ब्रिटेन ने भारत में अनैतिक शासन किया? हमें भिखारी बनाया तथा हमारा समस्त खून चूस लिया?एक जाति और मानवता के नाते हमारा घोर अपमान तथा शोषण किया गया। क्या जनता अब भी चाहती है कि इस अपमान को भुलाकर हम ब्रिटिश शासकों को क्षमा कर दें? हम बदला लेंगे, जो जनता द्वारा शासकों से लिया गया न्यायोचित बदला होगा। कायरों को पीठ दिखाकर समझौता और शांति की आशा से चिपके रहने दीजिए। हम किसी से दया की भिक्षा नहीं माँगते हैं और हम भी किसी को क्षमा नहीं करेंगे। हमारा युद्ध विजय या मृत्यु के निर्णय तक चलता ही रहेगा।
(भगत सिंह)
कितने ही भारी कष्ट व कठिनाइयाँ क्यों न हों, आपकी हिम्मत न कॉपर। कोई भी पराजय या धोखा आपका दिल न तोड़ सके। कितने भी कष्ट क्यों न आएँ, आपका क्रांतिकारी जोश ठंडा न पड़े। कष्ट सहने और कुर्बानी करने के सिद्धांत से आप सफलता हासिल करेंगे और यह व्यक्तिगत सफलता क्रांति की अमूल्य संपत्ति होंगी।
-(भगत सिंह )
अराजकतावाद तो एक बहुत ऊँचा आदर्श है। उस ऊँचे आदर्श तक तो हमारी साधारण जनता क्या सोचती, क्योंकि वे तो राज-परिवर्तनकारियों के आगे युगांतरकारी भी नहीं थे। वे लोग मात्र राज-परिवर्तनकारी थे।
-(भगत सिंह)
हम क्रांतिकारी होने के नाते अतीत के समस्त अनुभवों से पूर्णतया अवगत हैं। इसलिए हम नहीं मान सकते कि हमारे शासकों और विशेषकर अंग्रेज जाति की भावनाओं में इस प्रकार का आश्चर्यजनक परिवर्तन उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार परिवर्तन क्रांति के बिना संभव ही नहीं है।
-(भगत सिंह)
जेलों में और केवल जेलों में ही कोई व्यक्ति अपराध एवं पाप जैसे महान् सामाजिक विषय का प्रत्यक्ष अध्ययन करने का अवसर पा सकता है।
-(भगत सिंह )
अहिंसा सभी जनआंदोलनों का अनिवार्य सिद्धांत होना चाहिए।
-(भगत सिंह)
सभी आंदोलनों का इतिहास यह बताता है कि आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का एक अलग ही वर्ग बन जाता है, जिनमें न दुनिया का मोह होता है और न पाखंडी साधुओं-जैसा दुनिया का त्याग ही। जो सिपाही तो होते थे, लेकिन झगड़े के लिए लड़ने वाले नहीं, बल्कि सिर्फ अपने फर्ज के लिए या जिस किसी काम के लिए कहें, वे निष्कामभाव से लड़ते और मरते थे। सिक्ख इतिहास यही कुछ था, मराठों का आंदोलन भी यही कुछ बताता है। राणा प्रताप के साथी राजपूत भी इसी तरह के योद्धा थे। बुंदेलखंड के वीर छत्रसाल के साथी भी ऐसे ही थे।
-(भगत सिंह)
आतंकवाद संपूर्ण क्रांति नहीं और क्रांति भी आतंकवाद के बिना पूर्ण नहीं। यह तो क्रांति का एक आवश्यक अंग है।
(भगत सिंह )
आतंकवाद आततायी के मन में भय पैदा कर, पीडित जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत् कर, उसे शक्ति प्रदान करता है।
-(भगत सिंह )
भूख और दुःख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धांत ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता!
(भगत सिंह )
आत्महत्या एक घृणित अपराध है, यह पूर्णतः कायरता का कार्य है।
—(भगत सिंह )
इंसान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गई है कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है, लेकिन जो उनके मातहत हैं,उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाए रखना चाहता है।
—(भगत सिंह )
प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती।
—(भगत सिंह )
संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।
—(भगत सिंह )
मृत्यु के पश्चात् मित्र-शत्रु सब समान हो जाते हैं, यह आदर्श है पुरुषों का।
—(भगत सिंह )
बहुत से आदर्शवादी सज्जन समस्त जगत् को एक राष्ट्र, विश्व राष्ट्र बना हुआ देखना चाहते हैं। यह आदर्श बहुत सुंदर है। हमको भी इसी आदर्श को सामने रखना चाहिए। उस पर पूर्णतया आज व्यवहार नहीं किया जा सकता, परंतु हमारा हर एक कदम, हमारा हर एक कार्य इस संसार की समस्त जातियों, देशों तथा राष्ट्रों को एक सुदृढ़ सूत्र में बाँधकर सुख-वृद्धि करने के विचार से उठना चाहिए। इससे पहले हमको अपने देश में यही आदर्श कायम करना होगा।
—(भगत सिंह )
पुरानी व्यवस्था सदैव न रहे और वह नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके- यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम 'इन्कलाब जिंदाबाद' का नारा ऊँचा करते हैं।
—(भगत सिंह )
बौद्धिक स्तर पर सामान्य व्यक्ति होते हैं, पर वह सबसे उच्च आदर्श स्थिति होगी जब मनुष्य प्यार, घृणा और अन्य सभी भावनाओं पर नियंत्रण पा लेगा।
—(भगत सिंह )
समस्त शक्ति का आधार मनुष्य है। कोई व्यक्ति या सरकार किसी भी ऐसी शक्ति की हकदार नहीं है जो जनता ने उसको न दी हो।
—(भगत सिंह )
साधारण भारतीय साधारण मानव के समान ही अहिंसा तथा अपने शत्रु से प्रेम करने की आध्यात्मिक भावना को बहुत कम समझता है। संसार का तो यही नियम है तुम्हारा एक मित्र है, तुम उससे स्नेह करते हो, कभी-कभी तो इतना अधिक कि तुम उसके लिए अपने प्राण भी दे देते हो। तुम्हारा शत्रु है, तुम उससे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते। क्रांतिकारियों का यह सिद्धांत नितांत सत्य, सरल और सीधा है और यह ध्रुवसत्य आदम और हौवा के समय से चला आ रहा है तथा इसे समझने में कभी किसी को कठिनाई नहीं हुई।
—(भगत सिंह )
क्रांतिकारी अपने सिद्धांतों तथा कार्यों की आलोचना से नहीं घबराते हैं, बल्कि वे आलोचना का स्वागत करते हैं, क्योंकि वे इसे इस बात का स्वर्णावसर मानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें उन लोगों को क्रांतिकारियों के मूलभूत सिद्धांतों तथा उच्च आदर्शों को, जो उनकी प्रेरणा तथा शक्ति के अनवरत स्रोत हैं, समझाने का अवसर मिलता है।
—(भगत सिंह )
विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे,परंतु उसकी वैधानिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
—(भगत सिंह )
पिस्तौल और बम इन्कलाब नहीं लाते, बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।
—(भगत सिंह )
हमें 'इंकलाब' शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक अर्थ में नहीं लगाना चाहिए। इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगों के हितों के आधार पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न विशेषताएँ जोड़ी जाती हैं। क्रांतिकारी की दृष्टि में यह एक पवित्र वाक्य है।
—(भगत सिंह )
सब इंसान समान हैं तथा न तो जन्म से कोई भिन्न पैदा हुआ और न कार्य विभाजन से। एक आदमी गरीब मेहतर के घर पैदाहो गया है, इसलिए जीवन भर मैला ही साफ करेगा और दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का उसे कोई हक नहीं है, ये बातें फिजूल हैं।
—(भगत सिंह )
प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे, सभी कार्य उसकी इच्छानुसार होते रहें, तब कोई पाप या धर्म न होगा।
—(भगत सिंह )
प्रदीप भारतीय🇮🇳👳
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